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बातें होती हैं और होती रहेंगी

vidyarthi_uwaach
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नमस्कार ,
बातें होती हैं और होती रहेंगी , मुलाकाते भी होती रहेंगी ,देश की सुरक्षा पर आंच न आये इसलिए एक जवान सीमा पर शहीद होगा और उन जवानों पर आंच न आये इसलिए एक जवान रामलीला मैदान पर , हालाँकि हम उसे शहीद का दर्जा नहीं दे सकते ,क्यूंकि आत्महत्या सहादत कभी नही होती ,किन्तु एक रिटायर्ड जनरल के हिसाब से अगर ४ पैसे के लिए उस सैनिक ने आत्महत्या की तो मैं समझता हूँ कि हाँ चलो ठीक है भाई ,तुम कह लेते हो और मुस्कुरा देते हो ,मगर हम ,खैर हमारा तो वही है जो चलता रहा अब तक ,आप आयेंगे और हमको जगायेंगे ,फिर आप भी सोयेंगे और हम भी ,उसकी शहादत हमारे लिए इतना माएने नही रखती ,मगर लोकतंत्र और जनतंत्र के किसी भी जन कि मौत उसकी नीव हिलने के लिए काफी है , चाहे वो किसान हो या जवान , चाहे वो पंजाब का शख्स जो अपने मासूम बेटे को साथ में लेकर सिर्फ १० लाख के कर्ज के भार में इतना डूब गया कि पानी भी उसे तैरा न सका ,क्यूंकि शायद पानी उसके और उसके बेटे के वजन को तो उत्पलावन बल से तैरा सकता था किन्तु उसकी भावनाओं के बोझ से उसने हार मान ली , खैर इन लाशों पर सत्ता और विपक्ष राजनीती करेंगे ,पर हमारा और उनका क्या ? सवाल उठेगा कि हमारा क्या ? क्यूंकि हम तो वो लोग हैं जो ३ स्टार और ५ स्टार होटल में बैठकर कहेंगे कि “यू क्नो गवर्नमेंट बिकम इर्रेरेस्पोंसिब्ल ” या अगर मध्यम वर्गीय हैं तो अपने टेलिविज़न के आगे बैठकर कहेंगे कि सरकार तो ठीक है , आदमी ने कायरता दिखाई ,या अगर गरीब होंगे तो पहली बात हमारे पास टेलीविजन नहीं और दूसरी बात लड़का हमारा है बीमार तो घुसो यहाँ से दवाई का इंतजाम करना है , हाँ नहीं तो , सोच अगर आदमी के हिसाब से बदलती तो खतरनाक नहीं था किन्तु वो बदलती है रूपये के हिसाब से खैर और हम कर ही क्या सकते है वेल यू क्नो !!
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना कि पंक्तिया थी –
“”भेडिये कि आँखे सुर्ख हैं ,
उसे तब तक घूरो जब तक तुम्हारी आँखे सुर्ख न हो जाये ,
और तुम कर भी क्या सकते हो ,
जब वह तुम्हारे सामने हो “”
हालांकि यहाँ पर मैं एक बात पर सहमत हूँ कि सर्वोच्च सत्ता पर बैठा आदमी सबसे ज्यादा आलोचना का पात्र होता है , और आलोचना का मतलब ये भी नहीं होता कि उसे काम करने से रोका जा रहा हो और वो इस बात का बाहाना भी नहीं बना सकता , आलोचनाये प्रेरित करती हैं ,किन्तु सर्वोच्च सत्ता तो राष्ट्रपति के हाथ में है तो हम क्यूँ जाकर मुग़ल गार्डन में ये सवाल नहीं करते कि महामहिम ये तो अन्याय है , क्यूंकि हम जानते हैं कि कार्यपालिका कि सारी शक्तियां प्रधानमंत्री में समाहित है | ठीक है आप यू क्नो बोलिए मगर कमसे कम सही आदमी से क्यूंकि भारतवर्ष में अलग अलग काम के लिए अलग अलग कार्यपालिका की शक्तियां बैठी हैं ,और आपको उनका मतलब समझ में आना चाहिए ,जैसे घर कि टोंटी ठीक करने के लिए हम मोटर मकेनिक नहीं बुलाते वैसे ही बस , समझ गए न , पक्का ,ठीक , कसम से , चलो ठीक है कोई नहीं ,हालाँकि आलिया मकेनिक भी बुला सकती है पर आप नहीं ,खैर बुलाइए तो कुछ हासिल न हो शायद ||
खैर हर बार कि तरह जैसे मैं अंत में कुछ सवाल उठाता हूँ क्यूंकि सवाल उठाने पर हर आदमी खुश भी होता है नाराज भी , खुश इसलिए कि पहले ऐसा नहीं हुवा और नाराज इसलिए कि अब क्यूँ नहीं हो रहा और पहले बाद वाले लग जाते हैं आपस में सवाल करने में ,और हमारा कुछ नहीं ,
हमारे लिए तो दुष्यंत साहब शेर लिख कर गए ही हैं कि
भूख है तो सब्र कर रोटी न हुई तो क्या हुआ ,
आजकल दिल्ली में जेर-ऐ-बहस ये मुद्दा |
और भी कई शेर हैं जिन्हें सुनकर दिल तस्सली कर लेता है ,
खैर हम न पहले के हैं न बाद के , हम हैं अब के , इसलिए हम तो पूँछ ही लेंगे ,पर सही आदमी से ,पहला मुद्दा ndtv के बैन का तो कानूनन आप बैन तो लगा सकते हैं ,लगते भी आये हैं ,लेकिन मुद्दों पर, पर उस युग में जहाँ पर अभिव्यक्ति कि आजादी को लेकर इतने कानों और विचारधाराएँ जन्म ले रही हो वहां पर किसी चीज पर बैन लगाना प्रथम द्रष्टया अखरता है ,मतलब सुन के हाँ बैन लगा है ,किन्तु जब हम उसकी परत दर परत तह में पहुँचते है तो समझ आता है कि हाँ कुछ जरुरी भी था क्यूंकि NDTV जो अपने पक्ष में कह रही कल प्राइम टाइम में उसे समझ कर ऐसा लग रहा है कि उनको बोलने नहीं दिया जा रहा ,क्यूंकि वो सरकार की आलोचना कर रहे है ,खैर हम जानते तो हैं ही कि बैन क्यूँ लगा ? तो सरकार के विरोध करने में और राष्ट्र कि सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने में अंतर भी होता है ,मुझे तो बहुत कम पता है इस बारे में ,क्यूंकि १९ वर्ष कि जिंदगी का ही अनुभव है किन्तु आपको पता होगा मुझसे ज्यादा ,कई गुना ज्यादा | मैं अभिव्यक्ति की आजादी की बात जब करता हूँ तो मुझे समझ में आता है कि आजादी सबको मिलनी चाहिए अपनी हर तरह कि बात करने की ,हर तरह के विचार करने कि ,हर तरह कि राय देने की ,और आजादी चाहिए हर तरह से अपना समाधान पाने कि अपना उत्तर पाने कि |आप क्या बात करते हैं , मैं जरूर जानना चाहूँगा क्युकी हमें अभिव्यक्ति कि आजादी के बाद दूसरों को सुनने का धैर्य भी परमात्मा ने दिया ,खैर मेरे पास है लेकिन अधिकांशतः लोगों ने उस गुड को त्याग दिया है , हमने खुद अपने सोचने कि शक्ति को कम कर लिया है ,क्यूंकि’ यू क्नो वी हैव व्हाट्स एप्प एंड फेसबुक एंड ट्विटर संस नाउ ‘जिसमे एक आदमी सैकड़ो कि सोच बदलने का माद्दा रखता है ,लेकिन सच जानने कि कोशिश कोई नहीं करता ,
दुष्यंत का ही एक शेर मुझे फिर याद आ जाता है ये लिखते हुए ,
‘अफवाह है या सच है ये कोई नहीं बोला ,
मैंने भी सुना है अब जाएगा तेरा डोला |’
तो सोचने का तो मौका ही नहीं मिलता ,कैसे सोचे , क्यूंकि हम तो उन्ही संस कि दुकान से शोपिंग करते हैं आज कल |
लेकिन अगर कोई हमारी अभिव्यक्ति कि आजादी पर सवाल उठाएगा तो हम लड़ेंगे ,( अरे “के के विद्यार्थी “ये क्या कह दिया तुम तो सच में एक दिन विद्या कि अर्थी उठा डो यार ,मतलब लड़ेंगे ,)चलो अच्छा माफ़ी चाहता हूँ कुछ तो करेंगे ||
वर्ना मुक्तिबोध का तो शेर है ही हम फिर पढ़कर तस्सली कर लेंगे ,
“अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे ,
उठाने ही होंगे ,
तोड़ने होंगे ,
मठ और गढ़ सब ”
धन्यवाद ||
कृष्ण कुमार शुक्ल ” विद्यार्थी “

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